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Anita Sharma

Classics Inspirational Thriller

4  

Anita Sharma

Classics Inspirational Thriller

मैं महिला हूं इसीलिये

मैं महिला हूं इसीलिये

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पिकनिक हो या शादी सबको तैयार करके फिर तैयार होने जाती हूं,

"महिलाएं तैयार होने में बहुत देर लगातीं हैं"

ये सुनकर हौले से मुस्कराती हूं हां,

मैं महिला हूं शायद इसीलिये ये सब करपाती हूं।


हर चीज में मोलभाव कर एक-एक पैसा बचाती हूं

"तुम महिलाओं की ये आदत बहुत गंदी होती है"

ये सुनकर भी उस बचत से किसी अपने के जन्मदिन को खास बनाती हूं...

हां,मैं महिला हूं शायद इसीलिये ये सब कर पाती हूं।


जन्म मिला जहां जिसने किया पालपोस कर बड़ा

उनकी आंखों में खुदके लिऐ परायों सा एहसास बिना शिकायत सह जाती हूं,

"ये घर तुम्हारा नहीं" "तुम पराऐ घर से आई हो"

जैसी बातें सुनकर भी अपने दिल में अपनों के लिऐ पराई सी भावना नहीं ला पाती हूं।

हां, मैं महिला हूं शायद इसीलिए ये सब कर पाती हूं।


अपने सपने भूल अपनों के सपने पूरे करने में जी जान से लग जाती हूं

कभी-कभी अपने बच्चों अपने पति का तनाव कम करने को उनका पंचिगबैग बन जाती हूं।

गुस्से में इसलिये इतना कुछ सुना गये ये बोल मन को समझाती हूं,

"फिर भी जो तुम करती हो वो तुम्हारा फर्ज है" "जो तुमने किया वो तुम्हारा कर्तव्य था,,

ये सुनकर भी अपने दिल के घाव छुपा झूठी मुस्कराहट चेहरे पर सजाती हूं !

हां, मैं महिला हूं शायद इसीलिये ये सब कर पाती हूं।


निकल जाती है सारी उम्र व्यस्तता में 

अपनी मर्जी से एक दिन भी नहीं बिता पाती हूं,

फिर भी बनी रहती हूं बोझ मर्दों के कांधे का

क्योंकि अपने कार्यों का कोई मेहनताना जो नहीं पाती हूं,

फिर भी बिना किसी शिकायत हर जिम्मेदारी उठाती हूं

हां, मैं महिला हूं शायद इसीलिये ये सब कर पाती हूं।।


इतना कुछ सहने के बाद जो कभी हो जाये सहन करने की क्षमता खत्म

उठा दूं खुदपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज 

तो फिर चरित्रहीन, कुलटा, घर बिगाड़ू,

और भी ना जाने किन किन नामों से नवाजी जाती हूं,

फिर भी लड़ती हूं लड़ाई अपनी किसी से हार नहीं मानती हूं

हां, मैं महिला हूं शायद इसीलिये ये सब कर पाती हूं।


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