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Tej prakash pandey

Fantasy

4  

Tej prakash pandey

Fantasy

पागल सावन

पागल सावन

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घायल मन कुछ तो बोला है ,

अंतरतम तक फिर डोला है l

स्वास स्वास तक घुल के देखो ,

उनकी यादों को खोला है l

काली काली पलकें प्यारी ,

कभी मिली थी जो छुप छुप के l

मीठी मीठी यादें संग ले ,

उनके स्वर में फिर बोला है ,

घायल मन कुछ तो बोला है l


भीड-भाड़ फिर चकाचौंध में ,

दुनिया के इस कलकल स्वर में l

धुंधली यादें या यूं कहिये ,

अंतर वो कुछ चित्र बनाए l

सावन का वो सम्पुट पाके ,

रंगो को फिर से घोला है l

घायल मन कुछ तो बोला है l


तर्कों का संजाल बिछाये ,

रिश्तों को हम जो तज आये l

प्रेम मास की शीतलता में ,

रिमझिम रिमझिम सा बरसा है l

घायल मन कुछ तो बोला है l


जीत हार का खेल अनोखा ,

मन की दूरी को जो देखा l

पास पास हो दूर दिखे जब ,

विह्वल होकर फिर चहका है l

घायल मन कुछ तो बोला है l


टूट गए जो नेह के धागे ,

बंधे हुए जो अनुबंधों में l

फिर ये कौन छिपा भीतर है ,

जिसको लेकर ये तड़पा है l

घायल मन कुछ तो बोला है l


कहते कहते हम जब चुप थे ,

शब्दों की मर्यादा पकड़े l

रुक रुक कर फिर सहमे स्वर में ,

दिल से दिल तक जो धड़का है l

घायल मन कुछ तो बोला है l


चंदा की वो प्यारी किरनें ,

अब तू छुप जा मेघ घने में l

धरती के कोने -कोने में ,

सावन की अमृत वर्षा ने l

चकोर दादुर पिहु तक को ,

प्यारी कोयल प्यारे दिल को l

धीमे -धीमे हरियाली में ,

प्रिया याद में किलकोला है l

घायल मन कुछ तो बोला है l



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