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Divisha Agrawal Mittal

Inspirational

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Divisha Agrawal Mittal

Inspirational

एक धर्म

एक धर्म

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मज़हब के रंग हज़ार,

हर रंग से होती दुनियाँ

गुलज़ार,

रंग कौन सा ऐसा, 

जिसके बग़ैर कर

सको ज़िंदगी गुज़ार?


इन्द्रधनुषी रंग से

बनी ये क़ुदरत,

हरे से हैं बैर या

केसरिया से नफ़रत,

शाखों के हरेपन की,

ढलते सूरज की लाली की,

क्या नहीं इनमें से

किसी की ज़रूरत?


मिल कर सारे रंग

बन जाते हैं सफ़ेद,

शांति का प्रतीक

ये रंग स्वच्छेद,

एक बनकर क्यों

न हम रहे,

क्या भूल नहीं सकते

हम धर्म-जाती का भेद?


रास्ते अलग

पर मंज़िल एक,

पाने के लिए बस

कर्म हो नेक,

इन्सानियत हो

बस एक धर्म,

क्यों न बाक़ी

मज़हबी चोले

उतार हम फेंक?



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