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Divisha Agrawal Mittal

Drama

5.0  

Divisha Agrawal Mittal

Drama

हसरत

हसरत

1 min
227



जब घर से निकला था माँ ने कहा था ‘ध्यान रखना’,

पत्नी के आंसुओं ने बिना कहे सब कुछ कहा था,

बच्चा मेरा मुझ से गले लग बहुत रोया था,

मत जाओ , मुझे बहुत याद आती है कहकर मुझे रोका भी था,

पर मातृभूमि ने पुकार लगायी थी, 

बाक़ी सारी आवाज़ें उसमें दब सी गई थी।


जब लौट कर वापस आया तो तिरंगा ओढा हुआ था,

कोई शिकवा नहीं था मुझे अपनी शहादत पर,

पर आस थी काश़ कोई माँ के आँसू की धारा रोक पाऐ

पत्नी के चेहरे पर फिर से मुस्कान खिल जाए,

बच्चे को कोई मेरे अपने सीने से लगाए,

मैंने जान दी है देश के लिए कोई मेरा भी कर्ज़ चुकाए।


नहीं गिला मुझे मेरे दुश्मन से भी कोई,

भटका हुआ बाशिंदा था वो,

शिकायत तो है मुझे सियासती वज़ीरों से,

बॉंट दिया है हमें कुछ लकीरों से,

कुछ दिखाई देती हैं ज़मीनों पर,

पर खौफ़नाक तो वो हैं जो खोद दी हैं दिलों पर।


मौत मेरी यूँ ज़ाया न जाए,

ऐसी हसरत रखता हूँ,

दफ़न कर दो मेरे साथ दिलों की इन रंजिशों को,

खा लो क़सम आज तुम भी,

फिर से मेरा कोई भाई तिरंगे में लिपट कर ना आए,

फिर से उसका परिवार बिखर न जाए!






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