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Pranav Muthige

Others

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Pranav Muthige

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ज़िन्दगी से सवाल

ज़िन्दगी से सवाल

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हर बार की तरह मैं तेरे दरवाज़े खट-खटाता हूँ,

तुझमे अपने सवालों का जवाब ढूंढने लग जाता हूँ।

तेरे मन के हर विपधा के हल खोज करने लग जाता हूँ,

फिर भी उनके जवाब क्यों न पा पाता हूँ,

ज़िन्दगी, मैं तुझसे यह सवाल पूछ्ता हूँ।।


ज़रुरतों की कश्ती चलाते-चलाते क्यों सपनो का जहाज़ डूब जाता है?

चार लोगों की बातों से डरके आत्मा की आवाज़ क्यों दब जाती है?

समंदर सी तेरी गहराईयों में तैरता हुआ इनका जवाब ढूंढता रहता हूँ,

ज़िन्दगी, मैं तुझसे यह सवाल पूछ्ता हूँ।।



क्यों इन्सानि विपधा से लड़ते-लड़ते इन्सानियत गुम हो जाती है?

सफलता की कसौटी क्यों मुखौटे नय कर जाते है?

मेरे इन गूंजते सवालों का दर्द कोई मरहम न मिटा पाती हैं

क्यों मैं तेरे दरवाज़े पे सिर्फ खामोशी से मिल पाता हूँ?

ज़िन्दगी, मैं तुझसे यह सवाल पूछ्ता हूँ।।










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