क्या करूं ?
क्या करूं ?
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सुनो !
देखा है मैंने
नज़रों के कोनों से
तुमको चुपके-चुपके।
मन में चोर लिए
चली हूं बनके मैं मनचली
अपने ही सपनों को
पोटली में छुपाके।
सीने की तिज़ोरी
के ताले कसके
किए बंद मैंने
कहीं सुन ना ले कोई
मेरे मन के
वो अनकहे
अनसुने किस्से।
छुपाकर अपने एहसासों को
नजरें जो तुमसे मिलाई
जब तुम ना थे सामने
नज़रों को तुम्हारी खूब याद आई।
ये लव भी करते है बेवफ़ाई
जब तुम आते हो सामने
बोलना करते हैं देते हैं बन्द
जैसे इन्हें भी चुप्पी ही रास आई।
क्या - करूं ?
क्या - करूं ?
क्या- करूं ?