अबोध बलकवा
अबोध बलकवा
माई मोर कईली शेरवा सवारी जी
अईले भक्त देवी तोहरी दुआरी जी
आपन रूपवा ये माई हमके तू दिखईह
अबोध बलकवा जानी जनी तू भुलईह।
बहुते असरा लगाई अइली तोहरी दुआरी
बजरे तोहार माई खोला तू केवाड़ी
दरस के पियास आस हमरो तू मिटइह
अबोध बलकवा जानी जनी तू भुलईह।
दिन दुखियन के दुखवा तू हरेलु
कोढ़ियन के काया बांझ अँचरा तू भरेलु
हम हई भिखारी हमके खाली जनी लउटइह
अबोध बलकवा जानी जनी तू भुलईह।
शुंभ के मरलु जाई निशुंभ के मरलु
दुर्ग रक्षसवा चढ़ी गरदन उतरलु
संतोष भारती आई सारथी तू बनी जइह
अबोध बलकवा जानी जनी तू भुलईह।
