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Shivanand Chaubey

Drama

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Shivanand Chaubey

Drama

गीत लिखता हूँ

गीत लिखता हूँ

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गीत लिखता हूँ ज़माने

को जगाने के लिए

नहीं यश किर्ती और

शोहरत को मैं पाने के लिए।


हुयी गुलजार है नंफरत

से भरी गलियां ये

इल्मे इंसाफ मोहब्बत

को बढ़ाने के लिए।


प्रेम की बाग़ में नफरत

भरी न कलियाँ हो

आज गलियों को फिर

गुलजार बनाने के लिए।


जले मंदिर जले मस्जिद

 यहाँ ज़माने में

आयते इल्म और गीता

को बचाने के लिए।


जाए मंदिर में जो हिन्दू

मुसलमान मस्जिद में

हम तो तैयार है इन

दोनों में जाने के लिए।


नाम मजहब का यहाँ

कैसा ये बंटवारा है

जिस्म को जान से फिर

आज मिलाने के लिए।


राहे जन्नत में शिवम्

जाना हो जिसे जाये ना

हम तो जीते है मोहब्बत

 को बढ़ाने के लिए !


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