STORYMIRROR

Husan Ara

Abstract

3  

Husan Ara

Abstract

काश

काश

1 min
330

काश मेरा घर किसी ने ना जलाया होता

काश मेरे बाग़ का एक फूल भी न मुरझाया होता

अब पता चला कितना दर्द होता है

काश मैंने कभी किसी का , दिल न दुखाया होता।


अपनी मर्ज़ी, अपनी सोच, अपना फैसला

काश हर बार न अपनाया होता

हमेशा तू ही सही नही हो सकता

काश माँ बाप की ये बात समझ पाया होता।


सारी जिंदगी रेत सी फिसल गई

समय की सूई कितनी आगे निकल गई

मै वहीं खड़ा रह गया

काश मैंने भी कदम बढ़ाया होता

मैं तो औरों की फिक्र में लगा रहा

काश किसी अपने को भी गले लगाया होता।


काश मैंने कभी किसी का दिल न दुखाया होता

आज मेरे लबों पर ये " काश " न आया होता।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract