अरमान
अरमान
मैं भी उड़ना चाहती हूँ
जीवन को जीना चाहती हूँ
माँ ही तो माध्यम थी मेरी
क्यूँ जग में आना पड़ा भारी
मेरे हिस्से की तूने ममता
क्यूँ दफ़न कर दी सारी की सारी।
कोख में आ कर तेरी माँ
मैंने भी सपने सँजोए थे
मेरे भी कुछ अरमां थे
राह में मेरी
क्यूँ काँटे ही बोए थे।
तेरे आँचल की छाया में
हारसिंगार न बन पाई मैं
दुनिया में आकर भी तो
भरपूर दुलार न ले पाई मैं।
वक़्त की धार पर सदैव
होता रहा मेरा इम्तिहां
सहती आई हूँ सदियों से
ख़ौफ़ है मेरे सितम की दास्ताँ।
सीता सती सावित्री बनकर
अग्नि परीक्षा से गुज़री हूँ मैं
कसौटी पर वक़्त की फिर भी
खरी नहीं उतरी हूँ मैं।
रावण शकुनि दुशासन के
चक्रव्यूह में अभी भी जीती हूँ
जी कर मरना, मर कर जीना
विष का प्याला पीती हूँ।
लड़ कर उन से भी न हूँगी मैं यूँ बेहाल
वक़्त के गर्भ से निकलेगा एक सवाल
जब जब ज़ुल्म होंगे नारी पर
थर्रा उठेगा महाकाल।
जिसने जीवन दिया इस जग को
उसका यूँ अपमान है क्यूँ
उसके सपनों को बेबस करके
नर तू बना हैवान है क्यूँ ?