मेरी माँ की कविता
मेरी माँ की कविता
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आज दोपहर
मेरी माँ
मन में ठान लिया।
लिखेगी कविता
कल, आज और कल
की बातें
बहुत सोचकर
उन्हे शब्दों में पिरोने चाहा।
रचना चाहा कविता
इतने पर दस्तक हुआ
दरवाजे पर
खोलकर देखा तो
पिताजी को खड़े पाया।
उन्हे ऐनक नहीं मिल रहा है
आखड़ा जाने की जल्दी है
प्यारी बहना को
पुस्तक नहीं मिल रही है।
कॉलेज जाने की जल्दी है
और मेरी बेटी तो
अपने छोटी -छोटी कदमों से
चलकर
अपने दादी की
गले लग जाती है।
मेरी माँ की सोच
शब्दों से वाक्य बनाना
छंद -अलंकार को ध्यान मे रखना
सब भूल जाती है
और उसकी कविता
मेरी बेटी के चेहरे पर
खो जाती है।