STORYMIRROR

डाँ .आदेश कुमार पंकज

Drama

3  

डाँ .आदेश कुमार पंकज

Drama

गाँव

गाँव

1 min
236

आता हूँ जब अपने गाँव

पाता हूँ ममता की छाँव

बचपन की, यादें तिरती हैं

मन आँगन में वे फिरती हैं।


देख ठहर, जातें हैं पाँव

आता हूँ जब अपने गाँव

पगडण्डी पर चलते - चलते

मन में अनगिन सपने बुनते।

पाता हूँ बरगद की छाँव

आता हूँ जब अपने गाँव

बूढ़ी आँखों से ताक रही हैं

मैया ताके से झाँक रही हैं।

कागा की सुन काँव -काँव

आता हूँ जब अपने गाँव 

जग में सच्चा प्यार नहीं हैं

गाँव जैसा ,परिवार नहीं हैं।


गाँव में मिलता सच्चा ठाँव

आता हूँ, जब अपने गाँव।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama