गाँव
गाँव
आता हूँ जब अपने गाँव
पाता हूँ ममता की छाँव
बचपन की, यादें तिरती हैं
मन आँगन में वे फिरती हैं।
देख ठहर, जातें हैं पाँव
आता हूँ जब अपने गाँव
पगडण्डी पर चलते - चलते
मन में अनगिन सपने बुनते।
पाता हूँ बरगद की छाँव
आता हूँ जब अपने गाँव
बूढ़ी आँखों से ताक रही हैं
मैया ताके से झाँक रही हैं।
कागा की सुन काँव -काँव
आता हूँ जब अपने गाँव
जग में सच्चा प्यार नहीं हैं
गाँव जैसा ,परिवार नहीं हैं।
गाँव में मिलता सच्चा ठाँव
आता हूँ, जब अपने गाँव।