मात विहीन एक शिशु की करुण कथा
मात विहीन एक शिशु की करुण कथा
अरे कौन से कर्म थे, बिछुड़ गया जो साथ।
मात बिना इस जगत में, कौन चूमता माथ।।
बिछड़ा जो है मात से, जग में हुआ अनाथ।
आगे बढ़ कर कौन है, पकड़े उसका हाथ।।
माँ के आँचल से बड़ा, नहीं कोई पहचान।
कौन भले इस जगत में, मान सके सन्तान।।
माता ही होती यहाँ, बच्चे का संसार।
मात बिना होता नहीं, कोई भी आधार।।
बगिया की माली मात है, सींचे वह दिन रात।
कहती बालक का कभी, सूख न जाये गात।।
रह कर गीले में स्वयं, बालक को सुख देत।
छूछा हाथ फिराय के, सारे दुख हर लेत।।
परम पिता मेरे प्रभो, विनती करता एक।
मातृ हीन करना नहीं, काम कीजिए नेक।।
मातृ हीन बालक यहाँ, दर दर ठोकर खात।
देते उसको कष्ट सब, कोई नहीं लजात।।
माँ की छाया में मिले, बालक को सुख सार।
भगवान सबको दीजिए, माता का आधार।।
