अरमानों की बात न पूछो
अरमानों की बात न पूछो


कैसी बिछी बिसात न पूछो
मानवता की जात न पूछो।
हार-जीत जीवन में चलती,
अरमानों की बात न पूछो।
कैसी थी वह रात न पूछो
मिली हुई सौगात न पूछो।
मन में उठी तरंगे जो उन,
अरमानों की बात न पूछो।
सूरज की औकात न पूछो
कब आये बरसात न पूछो।
स्वच्छ गगन में हँसता चंदा,
अरमानों की बात न पूछो।
बीत गया जो तात न पूछो
कोइ भी ख़ुराफ़ात न पूछो।
कुचल गये अन्जाने में उन,
अरमानों की बात न पूछो।
बीते झंझा वात न पूछो
बीत गयी वह रात न पूछो।
नहीं मिलेगा कभी हमें उन,
अरमानों की बात न पूछो।
पाये जो आघात न पूछो
उठे यहाँ उत्पात न पूछो।
जहर भरा मन मंदिर में तो,
अरमानों की बात न पूछो।
पीड़ा क्यों ये मात न पूछो
उभर रहे जज्बात न पूछो।
गिरे रेत के महल सदृश उन
अरमानों की बात न पूछो।
बिगड़े अब हालात न पूछो
मंजिल धूमिल भ्रात न पूछो।
पंकज खूब सजाये थे उन,
अरमानों की बात न पूछो।