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डाँ .आदेश कुमार पंकज

Abstract

4.8  

डाँ .आदेश कुमार पंकज

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अरमानों की बात न पूछो

अरमानों की बात न पूछो

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304



कैसी बिछी बिसात न पूछो

मानवता की जात न पूछो।


हार-जीत जीवन में चलती,

अरमानों की बात न पूछो।


कैसी थी वह रात न पूछो

मिली हुई सौगात न पूछो।


मन में उठी तरंगे जो उन,

अरमानों की बात न पूछो।


सूरज की औकात न पूछो

कब आये बरसात न पूछो।


स्वच्छ गगन में हँसता चंदा,

अरमानों की बात न पूछो।


बीत गया जो तात न पूछो

कोइ भी ख़ुराफ़ात न पूछो।


कुचल गये अन्जाने में उन,

अरमानों की बात न पूछो।


बीते झंझा वात न पूछो

बीत गयी वह रात न पूछो।


नहीं मिलेगा कभी हमें उन,

अरमानों की बात न पूछो।


पाये जो आघात न पूछो

उठे यहाँ उत्पात न पूछो।


जहर भरा मन मंदिर में तो,

अरमानों की बात न पूछो।


पीड़ा क्यों ये मात न पूछो

उभर रहे जज्बात न पूछो।


गिरे रेत के महल सदृश उन 

अरमानों की बात न पूछो।


बिगड़े अब हालात न पूछो

मंजिल धूमिल भ्रात न पूछो।


पंकज खूब सजाये थे उन,

अरमानों की बात न पूछो।


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