हम तो बचपन में ।
हम तो बचपन में ।

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जैसे थे हम तो बचपन में,
वैसे ही हम तो पचपन में ।।
भीनी - भीनी गंध मिल रही,
आये हैं हम तो उपवन में ।।
जो भी कहता सच कहता हूँ,
रखते नहीं हम तो कुछ मन में ।।
शीतलता देते हम सबको,
रहते हैं हम तो चन्दन में ।।
जैसा हूँ मैं इस जीवन में,
वैसे ही हम तो दर्पण में ।।
अपना घर चौखट भाता है,
रहते खुश हम तो आँगन में ।।
जितना रहते माटी में हम,
उतना ही हम तो कंचन में ।।
मेरा जीवन सबका है यह,
बसते हैं हम तो जन जन में ।।
कैसे लाऊँ शांति जगत में,
रहते हैं हम तो उलझन में ।।