पंकज के दोहे
पंकज के दोहे
महल बनाया बाप ने, पाई -पाई जोड़ ।
बच्चे उनके यों हुए, नित्य रहें हैं तोड़ ।।
मात पिता के हृदय को, संतति रहि झकझोर ।
पंकज नित दिन तोड़ते, ममता की वह डोर ।।
ऐंठ रहा था तम बहुत, ठोक रहा था ताल ।
लघु दीपक ने कर किया, उसे हाल बेहाल ।।
कहीं अँधेरा गर दिखे, रख आओ दिनमान ।
सत्य कह रहा आपसे, खुश होगा भगवान ।।
चरणों में हनुमान के, जिनकी हो अनुरक्ति ।
पाते ज्ञान विवेक वे, बुद्धि भक्ति अरु शक्ति ।।
बुद्धि ज्ञान विवेक मती, पंकज जिसके पास ।
शान्ति - भाव से सोचता, रहता नहीं उदास ।।
जन्म मृत्यु के फेर की, पायी किसने थाह ।
निर्धन और महीप सब, गये एक ही राह ।।
मैं - मैं जिसने भी किया, बँधा लोभ की पाश ।
पंकज धरती पर हुआ, उसका सदा विनाश ।।
तम रजनी का साथ ले, दिखा रहा था आँख ।
रवि ने आकर तुरत ही, दबा लिया है काँख ।।
