बोल तूने क्यों हमें सजा दी है
बोल तूने क्यों हमें सजा दी है
बोल तुमने हमें क्यों सजा दी है
जिन्दगी ये बढ़े क्यों दुआ दी है।
रोशनी से हमें डर लग रहा था,
दीप बाती अरे क्यों जला दी है।
नींद पूरी नहीं हो सकी थी कल,
बीच में ही हमें क्यों जगा दी है।
राज मन में नहीं रख सकी है तू,
बात घर की उसे क्यों बता दी है।
शब्द बोलो अरे सोच कर के तुम,
बोल फिर से उसे क्यों रूला दी है।
मोड़ कर मुख चले हो दूर सच से,
झूठ को फिर अरे क्यों हवा दी है।
मर्ज बढ़ता गया है दिन रात जब,
ठीक होगा न जब क्यों दवा दी है।
नित्य रोना अरे किस्मत हमारी,
एक दिन के लिये क्यों हँसा दी है।
भूल सकता नहीं पंकज तुझे है,
जीत के भी मुझे तू जीता दी है।