टूटकर मैं गिरा था, बस बिखरा नहीं
टूटकर मैं गिरा था, बस बिखरा नहीं
टूटकर मैं गिरा था, बस बिखरा नहीं,
आज बिखरा तो खुद का, पता ही नहीं।
दर्द जख्मों का मिटता, नहीं एक पल,
और मरहम की मुझको, जरूरत नहीं ।
टूटकर मैं गिरा था, बस बिखरा नहीं,
आज बिखरा तो खुद का, पता ही नहीं ।।
क्या शिकायत करें, क्यों शिकायत करें,
जब मोहब्बत पे अपनी, भरोसा नहीं ।
जब कदम लड़खड़ायें, तो क्या हम करें,
अब हम में ही कुछ भी, बचा ही नहीं ।
टूटकर मैं गिरा था, बस बिखरा नहीं,
आज बिखरा तो खुद का, पता ही नहीं ।।
अब कफन ला के मुझको, दफन कीजिये,
मेरे दिल में तो धड़कन, बची ही नहीं ।
याद आती है मुझको, बहुत यार की,
आंसुओं के सिवा कुछ, बचा ही नहीं ।
टूटकर मैं गिरा था, बस बिखरा नहीं,
आज बिखरा तो खुद का, पता ही नहीं ।।
दूर रहना सदा, सुन ले मुझसे सनम,
अब यहां तेरा कुछ भी, बचा ही नहीं ।
आंसुओं से लिखी, दास्तां है मेरी,
अब कोई और पन्ना, बचा ही नहीं ।
टूटकर मैं गिरा था, बस बिखरा नहीं,
आज बिखरा तो खुद का, पता ही नहीं ।।