हम मिलेंगे तुम्हें फिर कहीं भी
हम मिलेंगे तुम्हें फिर कहीं भी
एक मोहब्बत चली थी हमारी यहां,
राह कांटों भरी थी कहीं न कहीं ।
चल न पाए कुछ पल संग में भी हम,
फिर जमाना हंसा था कहीं न कहीं ।
कल जमाना हमें भूल जाएगा जब,
साथ हम ही रहेंगे यहीं पर कहीं ।
छोड़ दुनिया को हम भी चले जाएंगे,
हम मिलेंगे तुम्हें फिर कहीं भी नहीं।
रातें कटती हैं रो-रो के हर एक दिन,
सब सिमट जाएंगी फिर कहीं न कहीं।
ख्वाब टूटे तो दिल का करें क्या हम,
दिल में धड़कन बची है कहीं भी नहीं।
कालिमा छाई ऐसी अंधेरा लगे,
अब कफ़न भी उजाला करता नहीं।
छोड़ दुनिया को हम भी चले जाएंगे,
हम मिलेंगे तुम्हें फिर कहीं भी नहीं।।
अब इबादत करें चाहे पूजा करें,
है मोहब्बत अधूरी यहीं की यहीं।
न तो मंदिर मिला पाए हमको सनम,
न तो मस्जिद में दमखम दिखा है कहीं ।
कुछ शिकायत करें गर तुमसे तो क्या,
है जो किस्मत हमारी जमीं की जमीं।
छोड़ दुनिया को हम भी चले जायेंगे,
हम मिलेंगे तुम्हें फिर कहीं भी नहीं।