एक परिंदा
एक परिंदा
बेहिसाब थी मेरी हजारों ख्वाहिशें
सलाखों ने तोड़ दी है सारी
कभी उड़ जाया करता था इस नीले गगन में
आज परों को कतर दिए हैं सारे
नहीं थी कोई हदें मेरे हौसलों के आगे
आज नजर जाती है जहां तक सामने सरहदें है सारी
उम्मीदों का आशियां था सारा आसमां
आज सलाखों में कैद हैं इरादे मेरे
बेफिक्र रहना सीख ही रहा था इस ज़माने से
आज जिम्मेदारियों की बेड़ियाँ मौजूद हैं पैरों में मेरे
ऊंचा में इतना उड़ा की खुद की परछाई भी न देखी थी
अब साथ जीना सीख रहा हूं अजनबी सायों से।
