" मेरे हमसफ़र "
" मेरे हमसफ़र "
बेटा ' एक माॅं का ,
पहले 'पति 'बनता है,
फिर बच्चों का ' पिता '
बाद में ' जीवनसाथी' ।
शुरुआती ज़िन्दगी की
दो पहियों की गाड़ी
सुख - दुख के हिचकोले
खाती चल पड़ती है ।
सभी जिम्मेदारियों को
निभाने वाला यह 'इन्सान'
साथ - साथ चलता हुआ
' हमसफ़र ' बन जाता है ।
कार्य - व्यस्तता के कारण
रोज़ाना की नोंक-झोंक के
साथ ज़िन्दगी का सफ़र
बीतता चला जाता है ....।
उम्र की सांध्य - बेला में
एहसास होता है कि --
हमारा अपना वक्त कहीं
खो सा गया है ...........।
खोए वक्त की ........
तृप्ति के लिए, लगते
हैं झाॅंकने ..... हम
बीते- झरोखों में ......
उन्हीं झरोखों का सुख,
हम बालकनी में बैठ,
सुबह - शाम चाय की
चुस्कियों के बीच लेतें हैं ।
नीचे बच्चों का खेलना,
झुरमुट से फूलों का झाॅंकना,
बीते दिनों को महसूस
करने में सहायक हैं .....।
सही मायने में तो अब
बने हैं, 'हमसफ़र ' ....
साथ-साथ हमेशा रहने,
लेने वक्त का आनन्द ....
ईश्वर तुमने जो किया है --
पति-पत्नी का गठबंधन ....
उस पाॅलिसी को रखना
सात जन्मों तक बरकरार ....
' हमसफ़र ' का हाथ ,
सात जन्मों का साथ ....
ज़िन्दगी और ज़िन्दगी
के बाद भी ...............।
' मेरे हमसफ़र '
को समर्पित