STORYMIRROR

Achyut Umarji

Tragedy

4  

Achyut Umarji

Tragedy

त्योहार -- गणपति बाप्पा

त्योहार -- गणपति बाप्पा

1 min
356


आज गणपति बाप्पा का पहला दिन...

खुद के घर बैठा हुआ था बाल्कनी में...

सार्वजनिक गणेशोत्सव का जुलूस देख रहा हूं...

और साथ देख रहा हूं...

आज के पीढ़ी का गानो का बजना और उन पर थिरकना...

और...

गाने भी ऐसे...

गणपत दारू ला...

दिल में बजी गिटार...

चोली के पीछे क्या है...

झिंग जिंग झिंगाट...

इत्यादि इत्यादि...


ये गणपति बाप्पा का आगमन है...

या...

या इस पीढ़ी का मनोरंजन?...

ऐसा लगता है मानो...

हमने कहीं खो दी है...

भगवान पर की श्रद्धा...


अभी हमारी पीढ़ी जिंदा है...

पर आज की पीढ़ी ने...

हमारी सीख, विचारों पर...मात कर दी है...

हम भी मानो को गये है...


अब क्या कहूं...

गणपति बाप्पा तुम्हें...

बस माफ कर देना हमें...

शर्म से आंखें और गर्दन झूकी हैं हमारी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy