पियर
पियर
याद कर उस दिन...
गहरी नींद लगी थी मुझे...
और तुम ने अपने गेसुओं को झटका...
करीब करीब पूरा गीला हो गया मैं ।।१।।
समझ ना पाया घर के भीतर...
कहां से बारिश की बूंदाबांदी हो रही है...
अचानक ऐसे लगा...
कहां से ठंड की लहर आयी ।।२।।
मैं ने अपनी आंखें जो खोली...
तेरी काया, तेरे तन पर...
मेरी नजरें तुम पर खिल गयी।।३।।
तुझे मैं एक नजर देखते रह गया...
मन में गुदगुदी सी हुई...
और मेरे चेहरे पर हंसी आ गयी ।।४।।
तुझे देख मैं तेरे करीब आया...
तुझे अपनी बाहों में लेकर...
हम दोनों एक दूसरे में दंग हो गये ।।५।।
बस...
अब तेरे बिन, नहीं लगता है मन...
अब जल्दी से आजा...
और नहीं कुछ है मेरी मांग ।।६।।
तेरे बिना यह सुबह उबाऊ लगती है...
ये तेरा पियर का बार बार जाना...
काले पानी की सजा से कम नहीं।।७।।