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डॉ मंजु गुप्ता

Inspirational

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डॉ मंजु गुप्ता

Inspirational

अनजाने रिश्ते

अनजाने रिश्ते

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मैं अपनी डॉक्टर बेटी हिमानी के साथ बस से पनवेल , नवी मुंबई से वाशी , नवी मुंबई अपने घर आ रही थी । शाम हो रही रही थी । हमें अपने घर आने की जल्दी थी । बूंदाबांदी ने तेज बारिश का रूप ले लिया था । 

उसी बस में पूरे दिन चढ़े गर्भवती महिला अपने प्रसव कराने के लिए महानगर पालिका , वाशी नवी मुंबई में आ रही थी । महिला के पति ने उसे छोड़ा हुआ था । वह अकेली थी लेकिन नेरुल डिपो पर उसने बस में ही लड़की को जन्म दे दिया । लड़की वहीं बस के फर्श पर गिर गयी ।बच्ची की नाल माँ के हाथ में थी । माँ भी नीचे फर्श पर बैठ गयी । बच्ची को मैंने अपनी गोद में लिया । ऐसा महसूस किया कि सृष्टि का नव अंकुरण भारत की बेटी लक्ष्मी , सरस्वती , दुर्गा का नव रूप धार के संसार में आयी है ।


 मुम्बई महानगर होने के कारण भारत के विविध जाति, धर्म , संप्रदाय , संस्कृति के लोग रहते हैं। बस में सभी भाषा , धर्म , जाति , लिंग , वर्ण के लोगों से भरी थी।कोई भी जन प्रसवित महिला की सहायता करने को आगे नहीं आया ।यह अद्भुत मंजर देख के डॉ हिमानी ने बस ड्राइवर से प्रार्थना की कि भाई , इस बस को नगरपालिका के अस्पताल तक ले चलो जिससे इसे वहॉं भर्ती करा सकें । उसने आनाकानी करते हुए कहा , " मैडम जी , इस बस का रूट उस तरफ से नहीं है इसलिए हम मज़बूर हैं । आप ऑटो से चले जाओ ।"

हिमानी ने उसे समझाया , "  बारिश भी अपना जोहर दिखा रही है , ऐसी हालत में ऑटो से नहीं जा सकते हैं । तुम इन पर मानवता के नाते दया करो और हमें महानगरपालिका के अस्पताल पर छोड़ दो ।"यह सुनकर ड्राइवर के मन में करुणा जागी और हामी भरते हुए कैसे तैसे अस्पताल में ले आया । 

ड्राइवर का धन्यवाद देकर अस्पताल के अंदर गए ।बेटी हिमानी डाक्टर थी तो वहॉं उसे एडमिट कर लिया । मैं उस नवजात की नाल पकड़े उसकी माँ ने बेटी को गोद में लिए वहीं खड़े थे । कैसे तैसे डॉक्टर के डिलीवरी रूम में पहुंचे ।

महिला डॉक्टर प्रसूति विशेषज्ञ यानी गैनोलॉजिस्ट थी ।उसको डॉक्टर हिमानी ने अपना परिचय दिया और डॉक्टर अपना नाम सीमा बताया ।यह अनजान रिश्ता दोनों डॉक्टरों का दोस्ती में बदल गया । उधर नर्स ने सीमा के कहे अनुसार नवजात की नाल काटने की पूरी तैयारी कर दी । डॉ सीमा ने नवजात की नाल काट के माँ , बेटी को अलग कर बेटी को पालने में रख दिया ।हमने डॉक्टर सीमा को धन्यवाद किया ।

 मैंने चैन की साँस ली और मातृत्व का कर्तव्य निभा के फ्री हुई और जच्चा की जरूरतों का सामान जैसे नवजात के लिए छोटा कंबल , कपड़े , धोती , मैक्सी , चादर आदि और जच्चा बनी पीड़िता के लिए हरीरा , गुड़ आदि के लिए बेटी हिमानी को साथ लिए घर आयी। फटाफट मैंने घर आकर हरीरा बनाया , बिस्कुट , फल और सब कपड़े , दो हजार रुपये आदि हिमानी को उस प्रसवित माँ को देने को कहा । डॉ हिमानी सब समान लिए नवजात की माँ को अस्पताल में दिया । नवजात को गोद में उठाकर गोद उठाई की रस्म निभाई । एक बेटी दूसरी अनजान बेटी का सहारा बनी । प्रसूता अपनी आँखों में अनजाने रिश्तों में आत्मीयता, अपनेपन की , मानवता की ऊँचाई को देख रही थी ।

ये सतरंगी पलों का यथार्थ मेरे स्मृति पटल से कलम ने समिष्टि के लिए यथार्थ कर दिए । डॉक्टर हिमानी ने उससे फिर मिलने का वादा कर के घर पर आने के लिए डग भरे ।



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