गजल
गजल
बहारें तुम्हें देख श्रृंगार करती। जवां ऋतु तुम्ही से पिया प्यार करती ।
तुम्हारे बिना प्रिय लगे रात नागिन, डसे है मुझे इश्क़ आजार करती।
न आसान मगर मुश्किलों से भरा है, सितम ख़्वाब पे ये अनाचार करती।
दिये दर्द के ज़ख्म दिल को सदा हैं, अजी ज़िंदगी को नहीं तार करती।
बसाया तुम्हें " मंजु "ने प्रिय हृदय में, बिछी नेह की बाँह सत्कार करती।