दोहों में चाँद
दोहों में चाँद
प्रदूषण से चमन- धरा, हुए आज बदनाम ।
करा चाँद की सैर को, देय प्रगति का नाम ।।
रखे प्रेम से बाँध के, सभी को निशा-नाथ।
लगता है बेकार जग, अगर बिछुड़ते नाथ ।।
रंग छिटकती है हिना, रच जाने के बाद।
मायका में ही रह के, चंदा आता याद।।
पैर जमीं पर टेक तू, छू चाँद, आसमान ।
गिरे अहं की तू
जमीं, मिले धूल में मान ।।
हौंसलों की उड़ान से, छू चंदा -आकाश ।
पंख चुनौती के लगा, बेटी करे प्रकाश।।
नहीं हुआ है चाँद पर, कुछ भी कभी विवाद ।
देख ईद पूजें इसे, कहीं चौथ पर चाँद ।।
इसरो ने फिर चाँद पे, जिद जाने की ठान ।
रजनी आयी है सही, कल को होय विहान।।