कर्ण-अर्जुन महायुद्ध
कर्ण-अर्जुन महायुद्ध
रणभूमि वो कुरुक्षेत्र की क्या क्या उसने देखा था
अति रथी भीष्म को भी विवश उसने देखा था
देखे उसने छल कपट देखे शीश अनेकों कटते
स्वयं की छाती को शीश और रक्त से सनते
पर जो अब तक ना देखा था वो होने वाला था
दो भाई भिड़ने वाले थे तांडव होने वाला था
एक तरफ था सूर्यपुत्र तो एक तरफ गांडीव धारी
एक तरफ मद्रराज थे एक तरफ थे गिरिधारी
एक तरफ व्यंग के बाण थे एक तरफ गीता का ज्ञान
एक तरफ भगवान साथ थे एक तरफ श्रापों का साथ
इंद्रदेव का दिया अस्त्र तो अब ना साथ कर्ण के था
लेकिन फिर भी हर पहलू में अर्जुन से वो बेहतर था
कहा कृष्ण ने की हे अर्जुन सामना तो कर लोगे
क्या कर्ण के घातक वार को अपने ऊपर सह लोगे
अर्जुन बोले सूतपुत्र पर इतना विश्वास ठीक नहीं
मेरे सारथी का उसकी प्रशंसा करना ठीक नहीं
कहा कृष्ण ने शत्रु को कम ठहराना ठीक नहीं
सूर्यपुत्र है अंगराज उसे कम ठहराना ठीक नहीं
मद्रराज बोले राधेय से अर्जुन से क्या लड़ पाओगे
अभी देखना रणभूमि से स्वयं ही लौट जाओगे
कहा कर्ण ने मद्रराज रथ आगे को ले जाओ मेरा
केशव की तरह आप भी थोड़ा साथ निभाओ मेरा
कृष्ण ने तो अर्जुन को साहस से भर डाला है
साथ कृष्ण अर्जुन के हैं वो कितना किस्मतवाला है
आए युदिष्ठिर सामने कर्ण के मार्ग में खड़े हुए
अपने भाई की रक्षा को निडर होकर अड़े हुए
कहा कर्ण ने इन हाथों में पासा ही तो भाता है
जाओ युदिष्ठिर जुआ खेलो तुमको बस वही आता है
नकुल सहदेव भी आए रोकने पर ना कोई बात बनी
कहा कर्ण ने बालकों से युद्ध करने का समय नहीं
समय आ गया दोनों भाई जब आमने सामने आए
दृश्य देखकर यह मानव तो क्या देवता भी घबराए
प्रारंभ हुआ युद्ध दोनों में बाण अनेकों ताने गए
इस युद्ध में दोनों पक्षों के सैनिक अनेकों मारे गए
शंकर का रौद्र रूप बन कर्ण ने युद्ध में पैर धरा
अर्जुन का भी रूप देख काँप उठी सारी धरा
अर्जुन के बाणों से कर्ण का रक्त बह निकला
अंगराज के वारों से अर्जुन भी घायल हुआ
तभी कर्ण के एक वार से अर्जुन का मुकुट गिरा
पर अस्त हुए जो सूर्यदेव तो अर्जुन वध टल गया
अगले दिन फिर युद्ध हुआ कर्ण को पता थी यह बात
विजय के समीप हूँ अब मेरा भाग्य करेगा कोई घात
युद्धभूमि में दोनों आए पर अब अंत सुनिश्चित था
कुंती के दो पुत्रों में से किसी एक का वध निश्चित था
धरती ने जकड़ लिया अंगराज के रथ का चक्र
धीरे धीरे धसने लगा फिर पहिया धरती के अंदर
कहा शल्य से कर्ण ने जाकर रथ का चक्र निकालो
सारथी हो तुम मेरे तो युद्ध की कमान सम्भालो
कहा शल्य ने की मैं कोई सहायता नहीं करूंगा
अपने भांजों के साथ विश्वास घात नहीं करूंगा
उतरा रथ से स्वयं अंगराज अर्जुन को बतलाया
निशस्त्र पर वार मत करना अर्जुन को चेताया
इतने में खुद बोल उठे भगवान देखते क्या हो
उसके रथ पर वापस आने की राहा देखते क्या हो
गांडीव उठा कर अपना युद्ध विराम कर डालो
ये मेरा आदेश है अर्जुन कर्ण वध कर डालो
अर्जुन बोले कि हे केशव कैसे उसको मारूं
निशस्त्र है वो इस समय कैसे शस्त्र उठा लूँ
याद करो अभिमन्यु को वो भी तो अकेला था
जब इसने कौरव सेना संग उस बालक को घेरा था
कर्ण बोला हे लीलाधर ये कैसी लीला है
क्या अर्जुन ने तुमसे छल करना सीखा है
हे राधेय छल कपट की बात ज़रा ना करना
उससे पहले द्यूत सभा को याद ज़रा कर लेना
देखते क्या हो गांडीव धारी जल्दी बाण चलाओ
मैं फिर कुछ ना कर पाऊंगा जल्दी शस्त्र उठाओ
फिर अर्जुन ने तीर चलाया सीधा अंगराज पर
शीश गिरा फिर अंगराज का कुरुक्षेत्र की भू पर
दुर्योधन के नेत्रों से फिर जल धारा बह उठी
पत्थर दिल की आँखें झरना बन बह उठी
कुंती ने फिर सत्य बताया सबको अंगराज का
मित्र के मित्र का भारत के दीपित ताज का
अर्जुन जीता युद्ध कृष्ण के मार्गदर्शन से
जीत गया युद्ध अपने भाई कर्ण से
लेकिन कर्ण आज भी वीरों में प्रथम आता है
सर्वेश्रेष्ठ में अर्जुन संग उसका नाम भी आता है।