अंगराज
अंगराज
मित्र की परिभाषा है वो है वीरों की भाषा
कृष्ण को जो था प्रिय अर्जुन से भी ज़्यादा
दुर्योधन ने जिसको अपना मित्र बनाया
सूत पुत्र वो बाद में अंगराज कहलाया
द्रोण वध हो चला आज था अब थी उसकी बारी
एक अकेला अंगराज था हर शत्रु पर भारी
सहदेव नकुल भीम युधिष्ठिर सब ने हार मानी
रणभूमि में कोई योद्धा ना था उसका सानी
अब बारी थी अर्जुन की जो शत्रु पक्का था
अंगराज जीवन भर जिसके वध को तरसा था
उसका साथ था दिया शल्य ने लेकिन व्यंग सुनाए
अंगराज भी शल्य के व्यंग सहन ना कर पाए
अंगराज ने अर्जुन पर फिर बाण अनेकों ताने
देख उसे इस रूप में लगे सभी घबराने
फिर धरती में जाने कैसे रथ का चक्र समाया
उसे बाहर करने हेतु उसने पूरा ज़ोर लगाया
उतर रथ से अंगराज ने चक्र को निकाला
पर उसका बाहुबल भी उसके काम ना आया
श्राप याद आया गुरु का पर वो ना घबराया
देख उसे इस दशा में केशव ने पार्थ को बताया
समय आ गया मृत्यु का अब अंगराज को मारो
गांडीव उठाओ अपना और बाण कर्ण पर तानो
कहा कर्ण ने की हे केशव कैसा अधर्म करते हो
देख निहत्था शत्रु को ये कैसा कर्म करते हो
अभिमन्यु को भूल गए क्या कहा कृष्ण ने उससे
कैसे सबने मार दिया था उस बालक को मिल के
समय यही आखिर है अर्जुन देर नहीं कर सकते
यदि कर्ण को ना मारा तो विजयी नहीं हो सकते
बाण चलाया पार्थ ने फिर शीश कर्ण का काटा
देख उसे इस दशा में कुंती को रोना आया
सबको उसने कर्ण के बारे में फिर बतलाया
फिर कृष्ण पर भी युधिष्ठिर को गुस्सा आया
फूट फूट कर रोया दुर्योधन भी उस क्षण
साथ कर्ण ने दिया उसका हर दिन हर एक क्षण
महाभारत की गाथा में कर्ण योद्धा महान है
मित्र मिले जिसको राधेय सा एक वो ही धनवान है।