प्रताप का प्रताप
प्रताप का प्रताप
झूठे इतिहास में शौर्य दबकर रह गया
जो विजयी था वो पराजित हो गया
मुगलों का बादशाह बना नायक सबका
राजपूतों का सरताज कहीं खो सा गया
जिन जिन को ऐसा लगता है एक सवाल उनसे
जो युद्ध भूमि में आया ही नहीं वो जीता कैसे
राजा उनका ना जीता ना अपना राजा हारा था
बरसों से लेकिन कुछ गलत इतिहास हमारा था
अकबर ने एक एक कर सारा भारत जीत लिया
मेवाड़ तरफ जब कदम बढ़ा तो राणा ने रोक लिया
अकबर ने सोचा कि प्रताप को थोड़ा डराता हूँ
उसके सामने अपनी झूठी तारीफ कराता हूँ
मान सिंह को भेजा उसने राणा के दरबार में
भोज कराया उसे राणा ने राजकीय सम्मान से
लेकिन मान की बातें सुन राणा भी क्रोध में आए
कहा मान को जाकर अकबर को यह बात बताए
अंग अंग कट जाए मगर शीश यह झुकेगा नहीं
अकबर से कहना उसका ज़ोर मेवाड़ में चलेगा नहीं
लज्जित होकर मान अकबर के पास वापस आया
दुख भरी वाणी में उसने प्रताप का संदेश सुनाया
क्रोध में आकर अकबर ने कहा सेना को तैयार करो
जाओ जाकर जल्द से जल्द महाराणा पर वार करो
अकबर की सेना के आगे छोटी राणा की सेना थी
राणा के साथ मगर विश्वसनीय भीलों की सेना थी
हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध करने सेनाएं आईं
अकबर कि सेना मगर छल कपट भी अपने संग लाई
प्रताप संग उनके शौर्य को टक्कर देने वाला था
वो और कोई नहीं उनका चेतक मतवाला था
हल्दीघाटी फिर धीरे धीरे लाशों का अंबार हुआ
नर हो या की हाथी घोड़े सब ही का संहार हुआ
महाराणा ने दिखलाया क्या करती है उनकी शमशीर
बहलोल खां को अश्व सहित बीच में से दिया चीर
महाराणा की छोटी सेना कब तक आखिर टिक पाती
तोपों के आगे तलवारें कब तक आखिर लड़ पाती
एक समय पर मुगलों के पास था मेवाड़ी राज
अब जाने क्या आगे करने वाला है मेवाड़ी सरताज
चेतक पर होकर सवार महाराणा जंगल की ओर चले
मातृभूमि की रक्षा हेतु वे उसका भी दामन छोड़ चले
नाला एक बड़ा सा देख महाराणा चिंता में आए
सोचें कि चेतक कैसे इतनी लंबी छलांग लगाए
जब तक सोचा महाराणा ने चेतक ने कर डाला था
नेत्र बंद करते ही चेतक ने नाला पार कर डाला था
लेकिन उसके बाद फिर भू पर गिर गया अश्व महान
वो महाराणा का भाई जैसा यही थी उसकी पहचान
चेतक वीरगति प्राप्त कर हमेशा के लिए जो सोया
जिसके नेत्र पत्थर के थे वो प्रताप भी जमकर रोया
जैसे तैसे परिवार सहित जंगल में एक स्थान बनाया
घास की रोटी भी खाई भाग्य ने कैसा दिन दिखलाया
संतान का हाल देख पिता फिर चुप ना रह सके
अकबर से संधि करने को पत्र लिखने को आगे बढ़े
थाम लिया हाथ पत्नी ने कहा कि ये क्या करते हो
अनगिन सैनिक और चेतक का उपहास करते हो
बात सुन महारानी की प्रताप ने फिर ठान लिया
मेवाड़ हमारा होगा फिरसे उन्होंने प्रण लिया
पर अभी मेवाड़ को छोड़ना ही आखिरी मार्ग बचा
मातृभूमि की रक्षा हेतु उनको मेवाड़ छोड़ना पड़ा
जंगल में चलते चलते उनको फिर आहट सी आई
जय महाराणा जय महाराणा की गूंज कानों में आई
देखा तो सामने मेवाड़ का सच्चा सेवक खड़ा था
भामा शाह के रूप में मेवाड़ का रक्षक खड़ा था
बोले भामा शाह ये मेरा सारा धन तुम लेलो
चाहो तो मेरे रक्त कि बूंद बूंद भी तुम लेलो
पर मेवाड़ को मुगलों के आतंक से मुक्ति देदो
प्रताप का प्रताप दिखलाओ चाहे कुछ भी लेलो
गले लगाया भामा शाह को रो पड़े फिरसे प्रताप
लेकर धन सारा उनका सेना बनाने में जुटे प्रताप
एक दिन ऐसा भी आया कि मेवाड़ पर हमला बोला
रौद्र रूप महाराणा का देख अकबर का सिंहासन डोला
एक एक कर महाराणा ने हर एक किला फिर जीत लिया
मेवाड़ पर राजपूतों का ध्वज लहरा जनता को उपहार दिया
भाग गया अकबर अपनी सब सेना ले लाहौर की ओर
फिर ना देखा उसने जीवन भर मेवाड़ की ओर।