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Sakshi Agrawal

Inspirational

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Sakshi Agrawal

Inspirational

इक मुलाक़ात- ज़िन्दगी के साथ!

इक मुलाक़ात- ज़िन्दगी के साथ!

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कल एक अजीब वाकया मेरे साथ हुआ,

एक नया सा जादू मेरे हाथ हुआ।

मेरे दरवाजे पे एक दस्तक हुई,

जब खोल के देखा मैंने तो बड़ी हैरत हुई।

सामने मुस्कराते हुए मेरे, मेरी अपनी ज़िन्दगी खड़ी थी,

कहीं तो देखा है इसको मैंने, मैं इस सोच में पड़ी थी।


हंसकर बोली वो क्यों पहचाना नहीं मुझे?

झेंप गई मैं, कोई जवाब नहीं सूझा मुझे।

हिम्मत तो देखो उसकी, मुझे परे कर वो सीधी अंदर चली आई,

ना दुआ ना सलाम, भला ये क्या तरीका हुआ भई।

हंस के बोली इतना जल्दी भूल गई क्या मुझको,

अतीत के पन्ने पलट के देख, शायद कुछ याद आ जाए तुझको।

मुझे भी उसकी शक्ल कुछ जानी पहचानी सी तो लगी,

फिर सोचा कहीं मेरे साथ कर तो नहीं रही ये कुछ दिल्लगी।

आह भरकर वो बोली, चल मैं ही ले के चलती हूं तुझे तेरे ही अतीत में

जब खुल के देखती तू सपने उस अदृश्य कल्पनातीत के।


जरा अपने बचपन के उन पन्नों को पलट के तो देख,

कुछ याद करने की कोशिश कर,

यादों के समंदर में एक पत्थर तो फेंक।

बचपन की उस अल्हड़ सी हंसी में,

उस मदमस्त ठहाके में, उस भोलेपन में;

वो मे मैं ही तो थी तेरे साथ, तेरी हर उमंग में,

तेरी मासूमियत में, तेरे निश्चल मन में।

जब तू रात रात भर जाग के एग्जाम्स की तैयारी करती थी,

तब मैं भी तो तेरे साथ तेरे सपनों में साझेदारी करती थी।

और याद है तुझे जब दिल तेरा टूटा था, ख्वाब हसीन वो छूटा था,

मैंने ही तो संजोए थे तेरे टूटे दिल के टुकड़े सब,

मैं ही तो संभालती थी तुझे, जब वो अपना भी रूठा था।

तू धीरे धीरे बड़ी होती गई, 

और मैं भी तेरे साथ कदम मिलाए आगे बढ़ती गई।


याद हैं जब कॉलेज के लिए पहली बार घर से दूर गई थी,

कितनी घबराई थी तू, कितना डर गई थी।

तब मैंने ही तो तुझे भविष्य के सपनों में उलझा के समझाया बुझाया था, 

अरे मैंने ही तो अनजान लोगों की भीड़ में

तुझे आत्मविश्वास से परिचित कराया था।

तेरी हर खुशी हर कामयाबी में झूम जाती थी मैं,

तेरे साथ सात अम्बर घूम आती थी मैं।

फिर धीरे धीरे तू अपने आप में व्यस्त होती चली गई,

तुझे पता ही ना चला ज़िन्दगी में दौड़ते दौड़ते

तू कब ज़िन्दगी से ही दूर होती चली गई।


तेरे पास अब बहुत कुछ था, कैरियर,

परिवार ,दोस्त, महत्वाकांक्षाएं और तेरे सपने,

पर इन सबके बीच भी तू थी बिल्कुल अकेली,

नहीं थे कोई तेरे अपने।

आज जब इतने दिन बाद मुझसे मिली है,

तो चल फुरसत में बैठ के चाय के साथ कुछ बात करते हैं,

कुछ गिले शिकवे कहते हैं, कुछ फरियाद करते हैं।

सिर्फ ज़िंदा रहने का, आगे बढ़ने का नाम ज़िन्दगी नहीं,

कोई कीमत नहीं उन ऊंचाइयों की जिसमें तेरी बंदगी नहीं।

मत भाग इस अंधी दौड़ में, थोड़ा आराम से चल,

जब ज़िन्दगी गुजर जाएगी, तब सिर्फ रह जाएंगे ये पल।

तो आज एक दूसरे से फिर करते हैं ये वादा,

तेरी अपनी ज़िन्दगी का हक होगा तुझपे सबसे ज्यादा।



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