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Sakshi Agrawal

Inspirational

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Sakshi Agrawal

Inspirational

ज़िन्दगी की किताब

ज़िन्दगी की किताब

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ज़िन्दगी की किताब के पन्नों पर इक लम्हा चुरा के लिखा था मैंने,

वो लम्हा भले ही रहा बस क्षण भर को मेरे पास;

पर उसमें अपना वजूद, अपना अस्तित्व सब देख लिया था मैंने।

उस लम्हे में खो कर मानो खिल उठी थी मैं,

जैसे रेगिस्तान खिल उठता है मृगतृष्णा के रंग में।

मैं उड़ना चाहती थी बादलों के भी पार,

शायद ये हौसला भी मिला था उसी के संग में।

मेरी किताब में लिखा वो एक लम्हा मानो मेरी पूरी कहानी कह गया था,

जैसे कि उसके पहले के सभी पन्नों का कोई मतलब ही नहीं रह गया था।

पर आज मुद्दतों बाद फिर से मेरे दिल ने इक ख्वाहिश की है,

ना जाने क्यों मन ने मचल के फरमाइश की है।

जी करता है फिर से खोलूं ज़िन्दगी की किताब,

और भर दूं उसके पन्ने, रंगो के समनदर से बेहिसाब।

तो क्या हुआ वो लम्हा नहीं है मेरे पास,

उसके खोने का गम तो है, पर वो गम इतना भी नहीं है ख़ास;

अब खुद लिखूंगी ज़िन्दगी की किताब मैं,

जिक्र होगा हर उतार चढ़ाव का, हर सपने का, हर जीत का , हर हार का।

क्योंकि समझ गई हूं मैं, मेरी ज़िन्दगी की चाबी मेरे ही हाथों में है,

इसका बंद दरवाज़ा खोलने के लिए अब किसी और से नहीं है मुझे कोई आस।


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