पिंजरे में कैद आज़ादी
पिंजरे में कैद आज़ादी


साहिल और समंदर के बीच इक दरिया है जो अपनी ही धुन में बहता है,
जमीन और आसमान के बीच एक रस्ता है जो अपनी अलग ही कहानी कहता है,
इस दरिया में बहने की और उस रास्ते पर चलने की छूट तो शायद लड़ झगड़ कर हमें मिल गई है;
मगर इन लहरों में तैरने की और उस रास्ते पर चलने की नहीं बल्कि उड़ने की जो हमारी आज़ादी है ना, वो आज भी पिंजरे में कैद है।
आज भी हमको देनी पड़ती है यह जो पग पग पर बनाई गई अग्निपरीक्षा है,
और आज भी आदमी का नाम चाहिए औरत को गर वो करना चाहे इस समाज में अपनी रक्षा है।
इन बंदिशों को हमारी ही जरूरत बताते हैं और कहते हैं कि इनसे ही तो तुम्हारी सुरक्षा है,
आदमी और औरत को अलग अलग कसौटी पर नापते हैं और फिर भी दावा करते हैं कि निष्पक्ष हमारी समीक्षा है।
ना चाहिए आरक्षण हमें और ना ही इच्छा रखते हैं कि हमारे ही हाथ में हो हर धनुष की कमान;
स्वाबलंबी है हम, आत्मनिर्भर भी हैं, बस मांगते हैं तुमसे थोड़े अवसर समान।
लड़की हो तुम, रात को अकेले घर कैसे आओगी?
अरे ! इतनी दूर काम करने कैसे जाओगी ?
घर भी देखना है और तुम्हारा काम भी, कैसे संभालोगी दोनों साथ में ?
कितना भी ऊँचा उड़ने की कोशिश कर लो, चांद तो आने वाला है नहीं तुम्हारे हाथ में!
और यह बात नहीं मैं करती सिर्फ आज की,
ये रीत तो सदियों पुरानी है ।
उस दौर में नारी की जो व्यथा थी, 
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इस दौर में भी नारी की वही कहानी है।
जब सीता मैया को भी देना पड़ा था अग्नि परीक्षण,
और भरी सभा में द्रोपदी का भी किया था चीर हरण;
फिर ये बेमतलब की चित्कार क्यों, अरे! इतना हाहाकार क्यों? तुम और हम तो फिर भी है तुच्छ और साधारण,
तभी तो हमारा गुस्सा, हमारा रोष लगता है इस समाज को अकारण ।
आज़ादी के परवानों में केवल भगत सिंह और आज़ाद का ही नाम क्यों लेते हैं?
क्यों नहीं वाक़िफ़ इस बात से कि इस आज़ादी ने लक्ष्मीबाई जैसी कई नारियों के बलिदान भी अपने में समेटे हैं।
हक़ हमें अब बराबर का दिया नहीं तो याद रखना, छीनना हमें भी आता है;
और जिस दुर्गा माँ की तुम पूजा करते हो, वक़्त आने पे वो भी बन सकती चंडी माता है।
हर बात में मन मारना,
हर कदम पे आह भरना,
कभी घुट घुट के जीना तो कभी तिल तिल के मरना;
आखिर इसी को तो औरत की पहचान कहते हैं,
जीते जी जो मरती है, उसी औरत को तो महान कहते हैं।
उसके सपनों पर, उड़ानों पर, सब पर बंदिशे लगाते हैं;
मगर दिखावे के लिए उसे यूं ही झूठ मुठ का भगवान कहते हैं
पर बस, अब बस बहुत हुआ ये झूठी आज़ादी का आडंबर;
अब हम भी खुली हवा में सांस लेंगे,
बेझिझक, बेखौफ़,
सदियों से बनाये गए इस पिंजरे की कैद से आज़ाद हो कर!