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Anupama Singh

Inspirational

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Anupama Singh

Inspirational

सारा जहाँ है पिता

सारा जहाँ है पिता

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कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान

है पिता

कभी धरती तो कभी आसमान है पिता

जन्म दिया है अगर माँ ने

जानेगा जिससे जग वो पहचान

है पिता


कभी कंधे पे बिठा कर मेला दिखाता

है पिता

कभी बन के घोड़ा घुमाता है पिता

माँ अगर पैरों पे चलना सिखाती है

तो पैरों पे खड़ा होना सिखाता

है पिता


कभी हँसी तो कभी अनुशासन है पिता

कभी मौन तो कभी भाषण है पिता

माँ अगर घर में रसोई है

तो चलता है जिससे घर वो राशन

है पिता


कभी ख़्वाब को पूरी करने की जिम्मेदारी

है पिता

कभी आंसूओं में छिपी लाचारी है पिता

माँ गर बेच सकती है जरुरत पे गहने

तो जो अपने को बेच दे वो व्यापारी

है पिता


कभी हँसी और खुशी का मेला है पिता

कभी कितना तन्हा और अकेला है पिता

माँ तो कह देती है अपने दिल की बात

सब कुछ समेट के आसमान सा फैला

है पिता


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