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Prem Bajaj

Inspirational

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Prem Bajaj

Inspirational

माँ

माँ

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घुटनों के बल चलता था,

माँ कहती आज मैं बड़ा हो गया ,

कैसे कहूं मैं बड़ा हो गया।

पहली धड़कन भी माँ के

भीतर ही लड़की थी,

जब खुली आँख तो पहला चेहरा

भी तो माँ का देखा था ,

जुबां को सुर दिए माँ ने 

खेलकर धूल से सना हुआ

जब मैं आता था

तो पर्याय गोदी में उठा लेती माँ।  


काला टीका आज भी माँ लगाती है,

आज भी खाना 

अपने हाथों से खिलाती है,

कैसे कह दूँ मैं बड़ा हो गया

बिन लोरी, बिन कहानी सुने

ना कभी सोता था।

जब भी घबराता हूं,

माँ के आंचल का सहारा पाता हूं।  


सर पर रहता सदा माँ का साया,

हर मुश्किल से बचाता माँ का साया।

आज भी माँ मुझ को आँखों का

तारा कहे, कैसे कह दूँ मैं बड़ा हो गया।

उस माँ के प्यार की क्या कोई मिसाल दे, 

काट कर पेट अपना बच्चों को खिलाती माँ,

भूल कर थकान अपनी बच्चों को

शीतल छाया देती माँ।

नई ऊंचाई, नया आधार, नया संसार,

कोई भी चीज़ नहीं सच है,

धरती से अम्बर तक, गहरा वो

समन्दर तक बस एक माँ का प्यार सच है ।


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