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Prem Bajaj

Others

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Prem Bajaj

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ठंडी में राहत

ठंडी में राहत

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राहत ठंडी से


बैठे हैं बड़े घरों वाले आलीशान कमरों में, ओढ़े गर्म कम्बल,

चल रहा गर्म हवा देता हीटर, कंपकंपाते हाथों में चाय का प्याला है। 

उस पर भी लगती ठंडी उनको, कोई करने को काम ना रजाई से बाहर हाथ निकाला है।

पहन ब्रांडेड जैकेट और जींस मोटी-मोटी ऊनी मोजो से खुद को ढक डाला है। 

ईश्वर का कहर तो देखो पड़ा उन गरीबों पर सड़क है घर जिनका,

आसमान को छत जिन्होंने बना डाला है । 

ना जाने कैसे सहते वो ये ठिठुरती सर्दी, ना वो कांपे ठंड और बारिश में,

ना कोहरा उन्हें सताता है, लगे रहते करने को मेहनत लिए आस

एक टुकड़ा जिंदगी के लिए।


कहीं अगर भूले से भी मिल जाए एक टुकड़ा जिंदगी का एक

उन्हें जी भर के वो जी लेते हैं, ना भी मिले तो चुपके से अपने आंसू वो पी लेते हैं। 

शीतल बहती बयार में ठिठुरन बढ़ती जाती है, बैठ जाता सूरज भी छिप कर पूस के ठंडे दिनों में।

जम जाता पानी भी ठंडी बर्फ के जैसे ही, घना कोहरा ऐसा छाया रहता,

बादल जैसे घूम रहा धरती पर। सर्द हवाओं से कांपते बदन, हाथ- पांव भी ठंड से जमने लगते हैं ,

सूर्योदय की आस लगाए, आसमान की ओर देखने लगते हैं ।

करते विनती सूर्य देव से आ कर दर्श दिखा जाओ, पाले से ठिठुरते हम दीनों पर अपनी दया बरसा जाओ।

इस ठिठुरते पाले से थोड़ा चैन दिला जाओ।


ना कोई रजाई पास इनके , ना कंपकंपाते हाथों में चाय का प्याला है,

ना कोई गद्दा बिछाने को, ना कोई चादर गर्म , ना कोई दुशाला है ।

ठंड में ठिठुरती हड्डियां इनकी , पाले में दांत इनके किटकिटाते हैं। 

मगर फिर भी ना ये घबराते हैं , एक टुकड़ा जिंदगी की आस लगाते हैं । 

हे रवि, डालो इन पर तपती किरणें , ठंड से जो बेहाल हैं।

आओ ना, अपनी तेज किरणों से इनको थोड़ा तपाओ ना, इस ठिठुरते पाले में थोड़ा चैन तो दिलाओ ना। 

दिन- रात करते मेहनत जो , उन मेहनतकश पर भी थोड़ा तो रहम दिखाओ ना,

मां की गरम छाती से लिपटे बच्चों को भी झोंपड़ी से बाहर बुलाओ ना,

कुछ तो कंपकंपाती ठंडी से उनको भी राहत दे जाओ ना।

ठंड की कोई तो खूबसूरत सुबह उनको भी दिखाओ ना।



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