एक ग़ज़ल...। एक ग़ज़ल...।
हफ्ते में कभी -कभार ही आईना कमाल बताता है... हफ्ते में कभी -कभार ही आईना कमाल बताता है...
मुफ़लिसी चल बसी, दीन रुख़सत हो गया साज़ तो ज़िऩदा रहा, अकसाम रुख़सत हो गया मुफ़लिसी चल बसी, दीन रुख़सत हो गया साज़ तो ज़िऩदा रहा, अकसाम रुख़सत हो गया
मुझे फरेब नहीं आता ग़ालिब जो है वो है ! कि बस मत पीने दो उन्हें और ये इम्तेहान इश्क का है, गम का ... मुझे फरेब नहीं आता ग़ालिब जो है वो है ! कि बस मत पीने दो उन्हें और ये इम्तेहान...
हो जाये जो क़ुबूल मेरी भी मुहब्बत, सरे बाजार फिर जश्न-ऐ-बहारा करेंगे..!! हो जाये जो क़ुबूल मेरी भी मुहब्बत, सरे बाजार फिर जश्न-ऐ-बहारा करेंगे..!!
कुछ इस तरह बर्बाद, हुए उनकी मोहब्बत में... कुछ इस तरह बर्बाद, हुए उनकी मोहब्बत में...