एहसास
एहसास
मुफ़लिसी चल बसी, दीन रुख़सत हो गया
साज़ तो ज़िऩदा रहा, अकसाम रुख़सत हो गया
मेरी रशके दीद अहतराम को राज़ी न थी
हमसफ़र हमनवा महबूब रुख़सत हो गया
कोई बनता बुत परसत कोई हे यकता परसत
तेरे मेरे बीच से इनसान रुखसत हो गया
जिन बच़च़ौं के लिये सोया नहीं बरसों से वो
उनके घर से बाप का बिस़तर रुखसत हो गया...!

