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Dr Javaid Tahir

Abstract

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Dr Javaid Tahir

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बरस

बरस

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मुझको मायल न कर फिर उसी शिद़दत से बरस

तू अगर मै है तो मैख़ाने से अलग आके बरस।


मैंने उम़्मीद को पाँवों के छालों पे मला अब तक

चांदनी अब तो मेरे पहलू में बरस।


फ़ैसला है अगर आसमां मे किसी रहमत का

फिर यूं किश्तों में नहीं, गश खाके बरस।


एक बूंद गिरने दे बारिश गुल की बाहों में

फिर चाहें किसी समऩदर पे बरस।


है मोहब़्बत पे यकीं तुझको तो ऐसा कर

तिशनगी और बढ़ा मेरी आंखों से बरस।


अब न जावेद मे रह गया मचलने का शहूर

अब तू छत पे बरस या आंगन में बरस।


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