उठेगा
उठेगा
जब नाख़ुदा हर एक सफ़ीने से उठेगा
मौजों की परिश्तिश से इंसान उठेगा
देखें ये दुआ देतीं हैं कब तक सहारा
उम्मत तेरे सजदों से पर्दा तो उठेगा
किस साँस से पूछेगा तरतीब वफ़ा की
अभी अज़ल से उठा है फिर क़ब्रों से उठेगा
आवाज़ कहाँ होती है अल्लाह की छड़ी मैं
मिट्टी मैं मिलाने को कुछ मिट्टी से उठेगा
सीनों से निकली हुई चीख़ों की अवज़ मैं
कोह के सीनों से तूफ़ान तो उठेगा
पत्थर पे खुदी थी सिफ़त ज़ुल्म की तेरे
शीशा मिज़ाज देख किस कुववत से उठेगा
है वक़्त अभी तौबा कर जावेद गुनाह से
वरना ये सय्याद हर घर से उठेगा।