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Dr Javaid Tahir

Others

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Dr Javaid Tahir

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इम्तहान

इम्तहान

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मार पत्थर मुझे ‘मगर’ रुख़ ए मज़हब हो तेरा

देख फिर ईमान मेरा कोई टूटा हुआ दिल तो नहीं


लगा आग मुझे ‘मगर’, कुफ़्र ए इनतेहा हो तेरा

कुरेद फिर दिल मेरा, तर्क ए ईमान तो नहीं


खींच सांसों से दम ‘मगर’ शोला ए मुज़तर हो तेरा

देख फिर दामन मेरा, जज़्बा अभी कम तो नहीं


ज़ख्म ए जाँ और बढ़ा ‘मगर’ ज़ुल्म ए फितरत हो तेरा

आवाज़ ए हक़ में मेरा,फिर कोई नुक्स तो नहीं


भूखा रखना मुझे ‘मगर’, जाम ए बरक़त हो तेरा

देख बच्चा मेरा, फ़ाकों से रोया तो नहीं


दर ब दर कर मुझे ‘मगर’, तख़्त सलामत हो तेरा

देख शिकवा मेरा, तुझ तक पहुँचा तो नहीं


ये तमाशा ही सही ‘मगर’, जश्न पूरा हो तेरा

दिल ए शीशा मेरा, अभी टूटा तो नहीं


जावेदा रख मुझे ‘मगर’, तू ही क़ातिल हो मेरा

देख क़ब्रों को मेरी, कोई सोया तो नहीं


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