इम्तहान
इम्तहान
मार पत्थर मुझे ‘मगर’ रुख़ ए मज़हब हो तेरा
देख फिर ईमान मेरा कोई टूटा हुआ दिल तो नहीं
लगा आग मुझे ‘मगर’, कुफ़्र ए इनतेहा हो तेरा
कुरेद फिर दिल मेरा, तर्क ए ईमान तो नहीं
खींच सांसों से दम ‘मगर’ शोला ए मुज़तर हो तेरा
देख फिर दामन मेरा, जज़्बा अभी कम तो नहीं
ज़ख्म ए जाँ और बढ़ा ‘मगर’ ज़ुल्म ए फितरत हो तेरा
आवाज़ ए हक़ में मेरा,फिर कोई नुक्स तो नहीं
भूखा रखना मुझे ‘मगर’, जाम ए बरक़त हो तेरा
देख बच्चा मेरा, फ़ाकों से रोया तो नहीं
दर ब दर कर मुझे ‘मगर’, तख़्त सलामत हो तेरा
देख शिकवा मेरा, तुझ तक पहुँचा तो नहीं
ये तमाशा ही सही ‘मगर’, जश्न पूरा हो तेरा
दिल ए शीशा मेरा, अभी टूटा तो नहीं
जावेदा रख मुझे ‘मगर’, तू ही क़ातिल हो मेरा
देख क़ब्रों को मेरी, कोई सोया तो नहीं