ढलान
ढलान
धुएँ सा सही उड़ा तो हूं
बुझा हुआ सही, दीया तो हूं।
तेरे सवाल वही, मेरे जवाब 'नहीं'
ये क्या कम, सामने पड़ा तो हूं।
न जाने दर्द कहां से उठता है
सूखे पऩजर पे, टिका तो हूं।
ले गया वक्त चमक चेहरे की
शम़्स न सही चिराग तो हूं।
न क़ुरेद ज़ख्म अब अरसा हुआ
तेरी नज़र मे , गिरा तो हूं।
उम़मीद कम है जऩ़त मिलेगी जावेद
क़तार लम्बी सही, खड़ा तो हूं।