फिर वही
फिर वही
ऐ वक़्त वो मेरा पहले सा लहजा ला दे
इश्क़ फूलों से चिड़ियों से मोहब्बत ला दे
दिला याद उनवान उन क़सीदों के मुझे
और किसी बात पर ज़ोर से हँसना ला दे
जब बनाए थे उसने मैंने ताजमहल
उस मोहब्बत की थोड़ी चाशनी ला दे
ऐ ग़ज़ल ना कर महफ़िल मैं गुलों की शिरकत
चाँद से चेहरे पे जो बेवजह पसीना ला दे
अपनी बातों मैं हुनर यूँ कर दे पैदा
जो तुझे नींद और मुझे रतजगा ला दे
दफ़्न हैं आँखों मैं मरासिम दिल के
कौन सी बात कब आँखों मैं आँसू ला दे
ऐ मेरे वक़्त कुछ तो समझ माना कर
पीछे जाकर मेरे ख़्वाबों की दस्तक ला दे
मैं जिस क़ुरबत से पुकारा था उसको कभी
मेरे लब पे फिर वो ताबाई ए गुलिस्ताँ ला दे
ये दौर कब सुनेगा मेरे दर्द ओ ग़ुबार
चल किताबों से झूटी तसल्ली ला दे
जावेदा रहता कहाँ है हुनर कोई
किसे फ़ुरसत है मुझे महताब का तमगा ला दे!

