अब उठते हैं
अब उठते हैं


उठते हैं, अहले वतन अब उठते हैं
हम हिज्र को माशूक़ ए वतन, महफ़िल से तेरी अब उठते हैं
हम उठते हैं
ख़्वाबों के गुलिस्ताँ अब तेरे सनम, बच्चों की ज़िदें अब तेरी हैं
हम शोहदा ए ज़मीं, अब अपने वतन से उठते हैं
हम उठते हैं
ऐ पुरवैय्या गंगा जमुना, तुम नाज़ ओ अदा से ही बहना
हम गुलशन के शहज़ादे, कांधो पे सबा के उठते हैं
हम उठते हैं
मत रोना शहादत पे मेरी, ये अहले ज़मीं को तोहफ़े हैं
कह देना मेरे फ़रज़ंदों
से, बा वज़ू वालिद उठते हैं
हम उठते हैं
सुरमे की जगह आँखों में, रूह ए शहादत भर देना
पूछे तो बताना दुनिया को सर क्यूँ कर हमारे उठते हैं
हम उठते हैं
हैं कैसे चिरागां हैरत है, रग ए खूं से शम्माएँ जलती है
माँ की गोदी से उठकर, दीवाने वतन से उठते हैं
हम उठते हैं
जावेदा रहे सेहरा सर पर जावेदा शहादत की मोहरें
देखना इस महफ़िल से अब, कितने नगमे उठते हैं
हम उठते हैं
अब उठते हैं