सत्य
सत्य
सत्य क्या है?
तथ्य या वास्तविकता के अनुरूप होने को सत्य कहते हैं ।
जैसे की विस्वास,प्रस्ताव, घोषनात्मक वाक्य,
जो तथ्य के अनुरूप है उसको हम सत्य समझते हैँ।
सत्य को आमतौर पर असत्य के विपरीत माना जाता है।
सत्य की अवधारणा पर दर्शन, कला,
धर्मशास्त्र और विज्ञान सहित विभिन्न संदर्भों
में चर्चा और बहस की जाती है।
अधिकांश मानवीय गतिविधियाँ
अवधारणा पर निर्भर करती हैं,
जहाँ एक अवधारणा के रूप में
इसकी प्रकृति को चर्चा का विषय
होने के बजाय ग्रहण किया जाता है;
इनमें अधिकांश विज्ञान, कानून,
पत्रकारिता और दैनिक जीवन शामिल हैं।
कुछ दार्शनिक सत्य की अवधारणा को
बुनियादी मानते हैं, और किसी भी
ऐसे शब्दों में व्याख्या करने में
असमर्थ हैं जो स्वयं सत्य की अवधारणा से
अधिक आसानी से समझे जा सकते हैं।
आमतौर पर, सत्य को एक मन-स्वतंत्र दुनिया
के लिए भाषा या विचार के पत्राचार
के रूप में देखा जाता है।
इसे सत्य का पत्राचार सिद्धांत कहा जाता है।
विद्वानों, दार्शनिकों और धर्मशास्त्रियों
के बीच सत्य के विभिन्न सिद्धांतों
और विचारों पर बहस जारी है।
सत्य की प्रकृति के बारे में कई अलग-अलग प्रश्न हैं
जो अभी भी समकालीन बहस का विषय हैं|
कुछ ऐसे प्रश्न है ;
हम सत्य को कैसे परिभाषित करते हैं?
क्या सत्य की सूचनात्मक परिभाषा देना भी संभव है?
कौन सी चीजें सत्यवाहक हैं और इसलिए सत्य या असत्य होने में सक्षम हैं?
क्या सच और झूठ एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं, या कोई और सच्चाई है?
सत्य के कौन से मानदंड हैं जो हमें इसकी पहचान करने और
इसे झूठ से अलग करने की अनुमति देते हैं?
ज्ञान के गठन में सत्य की क्या भूमिका है?
और क्या सत्य हमेशा निरपेक्ष होता है,
या यह किसी के दृष्टिकोण से संबंधित हो सकता है?
सत्य की खोज मैं बहुत से ऋषि मुनिओं ने
अपना सारा जीवन बिता दिया है।
आम तोर पर जिसमे हमें विस्वास है,
हम उसीको सत्य मानते हैँ।
जब कोई जादूगर किसी चीज को गायब कर देता है,
और फिर कुछ देर के बाद फिर से प्रकट कर देता है ;
तो हम इसे सत्य मान लेते हैँ,
क्योंकि हमें विस्वास हो जाता है
की सही मैं जादूगर ने उस चीज को गायब किया होगा।
इसलिए सत्य और कुछ नहीं,
वल्कि हमारा विस्वास है।
जब तक हमें किसी चीज पर विस्वास नहीं होता,
हम उसे सत्य नहीं मानते हैँ।
पहले लोगों को लगता था,
की एक ही दिशा पर बहुत देर तक
चलने से आप निचे गिर जाओगे ;
क्योंकि उन्हें विस्वास था की
धरती समतल है!
पर अब हम जानते हैँ,
की धरती गोल है,
और हम ठीक उसी जगह पर पहुंचेंगे
जहाँ से हमने सुरुवात की थी,
अगर हम एक ही दिशा मैं
आगे बढ़ते चले जायेंगे।
सत्य और झूठ का बिबाद तो वैसे
निरंतर चलता रहता है।
हमें लेकिन हमेशा अपने जीवन मैं,
सत्य का ही साथ देना चाहिए ;
क्योंकि चाहे कितना भी घना बादल हो,
सूरज को ज्यादा देर तक छुपा नहीं सकता है।
दिए की एक छोटी सी रौशनी भी,
पुरे कमरे को रोशन कर देती है।
इसीलिए अपने जीवन मैं सकारात्मक ऊर्जा का,
प्रवाह लाएं और हमेशा सही दिशा पर चलें,
और सत्य का साथ दें।
'सत्यमेव जयते '
