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SIDHARTHA MISHRA

Inspirational

4.5  

SIDHARTHA MISHRA

Inspirational

राजा जनक

राजा जनक

3 mins
499


एक बार एक व्यक्ति ने किया प्रश्न

राजा जनक से कि क्या कारण है,

इस धरती के सभी सुख सुविधा हैं आपको मिली।


भगवान आपके जमाता है,

मां लक्ष्मी है बनी आपकी बेटी।

संसार के सारे ऋषि महात्मा आते है

आपकी सभा मैं, बहती है ज्ञान धारा

आप ही की सभा मैं।


राजा जनक बोले की है नहीं पता इसका कारण उन्हें,

पर बाद में लगे सोचने इसके बारे मैं।

रात्रि में एक ऋषि आये उनके स्वप्न में,

बोले की कल सुबह जाना पश्चिम की दिशा में

और मिलेगा इक साधु जो करेगा निवारण

तुम्हारे इस प्रश्न का।


सुबह राजा जनक गए पश्चिम दिशा में,

जहाँ मिला एक साधु उनको सही में।

साधु बोले की करूँगा हल तुम्हारा प्रश्न का

पर रहना पड़ेगा आज की रात मेरे कुटिया में,

और खाना पड़ेगा पत्ते जो मैं खाता हूँ।


राजा जनक रहे वहां और खाए पत्ते साधु के साथ।

अगली सुबह को बोले साधु राजा जनक से

कि पश्चिम दिशा मैं जाओ और 

मिलेगा और एक साधु तुमको जो

खाता दिखेगा राख आपको।


राजा जनक गए बताए हुए मार्ग पर और पाया एक

साधु जो खा रहे थे राख को।

उस साधु ने कहा कि है पता उनको आपके इधर

आने का कारण, पर इसका जवाब मिलेगा आपको

पश्चिम दिशा मैं आगे जाकर।


राजा जनक ने बिताई रात उन साधु के कुटिया पर,

और चल पड़े फिर से पश्चिम दिशा पर।

शाम होते होते वे पहुंचे एक गांव पर

और साधु के कहने मुताबिक गए उस गांव के

प्रधान के घर जहाँ उनका बेटा उसी दिन पैदा हुआ था।


पिछले साधु महाराज ने कहा था कि वही एक दिन

के बालक से आप पूछिएगा एकांत मैं

अपने सवाल का जवाब ।

गांव के प्रधान ने जब जाना कि राजा जनक

पधारे हैं उनके द्वार पर तो वे बहुत ख़ुश हो गए।


राजा जनक ने कहा कि वे उनके बालक को

एकांत में आशीर्वाद देना चाहते है।

जब सब कोई चले गए कमरे से तो उन्होंने

पूछा उस एक दिन के बालक से,

लेकिन उनके मन में शंका थी कि क्या इतना छोटा

बालक जो कुछ घंटों पहले पैदा हुआ है,

दे पाएगा उनके प्रश्नों का उत्तर!


लेकिन वह बालक बोल पड़ा।

बालक ने कहा कि इसी गांव मैं कई वर्ष पहले

एक बहुत गरीब औरत अपने चार बेटों के साथ

रहती थी।


भीख मांग कर वह अपना गुजारा करती थी।

हालत ऐसा हुआ कि कई दिनों तक उसके परिवार

को भूखा रहना पड़ा।


फिर आखिरकार उसे एक दिन चार रोटी मिले।

उसने खुद ना खाकर अपने चारों बेटों में बाँट दिया।


उसी पल एक आगंतुक आए और उस औरत को

कहा कि मैं बहुत भूखा हूँ और मुझे कुछ खाने को दीजिए।


औरत ने कहा कि मेरे पास बस चार रोटी थी जो

उसने अपने चार बेटों को दे दी।

आप चाहें तो उनसे मांग लीजिये।


आगंतुक ने सबसे बड़े बेटे से माँगा तो

उसने ये कहकर इनकार कर दिया कि अगर वह

उन्हें रोटी दे देगा तो क्या वह पेड़ के सूखे पत्ते खाएगा?


बालक ने कहा कि जिस साधु से राजा जनक सबसे

पहले मिले थे, ये वही बड़ा बेटा था जो इस जन्म

मैं सूखे पत्ते खा रहा है।


फिर दूसरे बेटे ने ये कहकर इनकार किया कि अगर

उन्हें रोटी देगा तो क्या वह राख खाएगा?

ये बेटा इस जन्म मैं राख खाते हैं और राजा जनक

को दूसरे साधु के रूप मैं मिले थे!


अब फिर तीसरे बेटे ने ये कहकर इनकार किया

कि अगर उन्हें रोटी दे देगा तो वह मर जायेगा!

ये बेटा वह बालक स्वयं था जो इस जन्म में

उसके पहले दिन के पूरा होने के कुछ पल में

मर जाएगा!


सबसे छोटे लड़के ने कुछ कहे बिना ही

अपने रोटी को उस आगंतुक को दे दिया।


आगंतुक तो रोटी खाकर वहां से चले गए,

लेकिन छोटा लड़का जिसने उन्हें रोटी दी थी,

वह कुछ पल मैं भूख से मर गया।

ये लड़का राजा जनक स्वयं थे और

इस जन्म मैं उन्हें उनके पिछले जन्म के

इस असाधारण पुण्य के लिए राज्य और वैभव

कि प्राप्ति हुई है।


ये कहकर बालक चुप हो गया।

राजा जनक भी अपने प्रश्नों के उत्तर पाकर,

और भगवान के इस लीला कि असाधारण अनुभूति

के साथ उस गांव के मुखिया से विदा लेकर

अपने महल वापस आ गए।


इस तरह हम इससे यह सिख ले सकते है

कि कोई भी अच्छे और साफ हृदय से किया गया

काज खाली नहीं जाता।

हमें कभी ना कभी उसका फल अवश्य मिलता है।


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