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neeraj soti

Inspirational

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neeraj soti

Inspirational

सृष्टि के प्रारम्भ से ही नारी की शक्ति और करुणा का विस्तृत विवरण काव्य रूप

सृष्टि के प्रारम्भ से ही नारी की शक्ति और करुणा का विस्तृत विवरण काव्य रूप

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होय जिक्र पत्नी भगिनी का या फिर हो महतारी का।

मोल कभी ना चुका सका है  पुरुष सृष्टि में नारी का।।


आदि काल में महिषासुर अरु चण्ड मुण्ड बलशाली थे।

शुम्भ निशुंभ दैत्य वीर भी ग्रास बने थे काली के।।

नारद के अभिमान भंग में मूल रहा नारी का तन।

अमृत वितरण भस्मासुर वध किए मोहिनी के नर्तन।।

पीर परे तो सुमिरन करते सब ही खप्पर वाली का।

मोल कभी ना चुका--------------


स्वप्न वचन रक्षार्थ भूप ने राज पाट जब छोड़ दिया।

बिका डोम के हाथों मन के भावों से मुँह मोड़ लिया।।

कर परिपाटी के पालन में पितृ मोह जब त्याग दिया।

मृतक पुत्र के संस्कार हित माँ ने आँचल भाग दिया।।

सत्यव्रती की गूँज में दबा दर्द मात दुखियारी का।

मोल कभी ना चुका-------------


त्रेता युग की नारी गाथा कहे लेखनी रो रो कर ‌‌।

जान पिता हित यज्ञ हेतु पति भेजा निर्वासित हो कर।।

एक मात भी विवश हो गई एक मात की इच्छा पर।

जनता अविश्वास कर बैठी रानी अग्नि परीच्छा पर।।

राजकुँवर तक पलते वन क्या कहें मात लाचारी का।

मोल कभी ना चुका-------------


द्वापर में इक मां ने जन्मा अरु दूजी ने प्यार दिया।

अपने मन में पीर पाल कर सभी सुखों को वार दिया।‌।

अल्हड़ ग्वालिन की प्रीती से स्वयं विधाता हार गया।

नारी का अपमान किया तो मृत्यु मुख परिवार गया।।

सौ सुत वाली हुई निपूती दुःख पहाड़ गांधारी का।

मोल कभी ना चुका-------------


कहने को तो अब इस युग में स्त्री पुरुष बराबर हैं।

मगर परीक्षा फल देखें तो नारी नर से ऊपर है।।

गृह सीमा में रहने वाली अब तो सागर पार चली।

अन्तरिक्ष तक जा पहुंची है मानो धरा पछाड़ चली।।

नहीं बचा है क्षेत्र कोइ जँह दखल न होवे नारी का।

मोल कभी ना चुका -----------


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