माटी का कर्ज
माटी का कर्ज
मां मुझे भारत माता की सेवा में जाने दो।
अनगिनत वीरों ने आहुति दी है,
मुझको भी माटी का कर्ज चुकाने दो।
अलग स्नेह है मां भारती के चरणों में,
मुझे इस दुलार का आनंद उठाने दो।
हर जवान सीमा पर मुस्तैद है।
मौत से आंख मिलाते है,
परंतु रण में पीठ नहीं दिखाते है।
मां मुझे भारत माता की सेवा में जाने दो।
शीश कटाया है ना जाने कितने वीरों ने,
मुझे भी अर्पित हो जाने दो।
जंग हमने ना कभी पहले छेड़ी है और ना छेड़ेंगे,
परंतु जो हमला करेगा उसको बाहर खदेड़ेंगे।
कल शहीद हुए मित्र की शहादत की कसम,
दुश्मन के कई सर लेकर आऊंगा।
हूं भारतीय सैनिक युद्ध में ,
सदैव देश का मान बढ़ाऊंगा।
मुझको भी परमवीर चक्र लाना है,
देश का शौर्य युद्ध में बढ़ाना है।
कुछ कहते हैं लद्दाख एक शीत बंजर मरुस्थल है,
थार रेगिस्तान में क्या है? और,
सैनिकों का काम ही है बलिदान देना,
यही कहना है उनसे, देश सर्वस्व है हमारे लिए।
माटी पर कुर्बान ऐसा सौभाग्य विरलों को मिलता है।
हूँ मैं नींव का पत्थर, नजर नहीं आऊंगा,
परन्तु हमेशा देश को मजबूत करके जाऊंगा।
हौसलों की कहानी कुछ ऐसी है,
अगर नहीं होगी गोलियां तो संगीन से सर उड़ाऊँगा,
रहा निहत्था तो हाथों से ही शत्रु को उखाड़ आऊंगा।
