कविता- ज्ञान दाता
कविता- ज्ञान दाता
ज्ञान दाता विज्ञान दाता तुम ही हो।
हे गुरु प्रकाश दाता मुक्ति दाता तुम ही हो।
जीवन में अंधेरा बहुत था तुमसे पहले।
था घना कोहरा तुम्हारी दृष्टि से पहले।
मूल्य कुछ भी न था मेरा संसार में।
खा रही थी हिचकोले नाव मझधार में।
देवता मेरे माता पिता तुम ही हो।
उससे पहले माँ मेरी गुरु बन गई।
मेरे अवगुण दूर करने की ठन गई।
गिरना उठना चलना बोलना सिखा।
कौन क्या बताया बचपन गोद में बिता।
मुझ अज्ञानी चरण धूल दाता तुम ही हो।
शिक्षक गर जहाँ में न होते।
हर तरफ मूढ़ अज्ञानी भटक रहे होते।
गुरु की महिमा अद्भुत अनमोल है।
गुरु बिन जीवन अधूरा सत्य वचन बोल है।
समाज सुधारक राष्ट्र निर्माता तुम ही हो।
हे गुरु प्रकाश दाता मुक्ति दाता तुम ही हो।
