गुरु का ज्ञान
गुरु का ज्ञान
गुरु वो उजाला है जो
बिना दीपक के भी शिष्य के
जीवन को रौशन करता है।
गुरु का ज्ञान वो लहर है जो
बिना समुद्र के भी बहता है
हर किसी के लिए।
गुरु का मन है वो पावन ज्योत,
जिसमें ना कोई स्वार्थ,
ना किसी के लिए भेदभाव।
गुरु की उंगली पकड़ कर
चला हर वो इंसान,
जो भटका था अपना मार्ग।
एक गुरु ही है जो हमेशा
स्वयं से भी आगे अपने
शिष्य को रखता है ।
एक गुरु ही जो अपनी कुटिया
में रहकर अपने शिष्यों को
महलों के काबिल बनवाता है।
आज पूरा संसार बदल गया है
परन्तु नहीं बदले तो वो है गुरु
आज हर रिश्ता मतलब का
रिश्ता है ,
अगर कोई सच्चा है तो वो है
माता पिता,
ओर गुरु ओर शिष्य का रिश्ता।।
इसलिए गुरू के लिए मेरी
कविता स्वरचित
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥