शरद ऋतु
शरद ऋतु
लो जी आ गई सर्दी की रात।
चलने लगी हवाएं
धुंधला हुआ आसमान।
कभी दिखे तो कभी हुए
ओझल रास्ते।
ओस में नहाए
भीगी फूलों की पत्तियाँ
छुपी मंदिर की झंडियां।
सर्दी की फुहारों से भीगा
मौसम, बचपन के खेलों
का वो आनंद ।
लो जी आ गई सर्दी की रात
ठिठुरते हाथ, किटकिट करते
दांत,
सूरज के निकलने का कर रहे इंतजार।
पकोड़ों की खुशबू, हलवे की
मिठास, कर रहे जीवन को
खास।
ओढ़ रजाई बैठे थे साथ
कर रहे कुछ यादों की मीठी बात।
लो जी आ गई सर्दी की रात।
यादों की किताबों के पन्ने खोल
आग में सेक रहें हाथ
गुम हो गई अब वो रात।
ठिठुरते हाथ लग जाते काम
चंचल मन ,थका तन ,
अंधेरे में सब हो जाते शांत।
लो जी आ गई सर्दी की रात।।
